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ग़ज़ल मिट्टी के खिलौने गरीबों की पहुंच से अब बाहर हो गए। कह ने को धरती छोड़कर लोग चांद के खरीदार हो गए।। कुर्सी की चाहत में मर्यादा और संस्कार तार- ...